कर्म की प्रधानता
आजकल के अधिकांश मनुष्यों के चेहरे पीले होने का कारण यह है कि वे अपने जीवन से संतुष्ट नहीं हैं। इस असंतोष के पीछे स्पष्ट कारण हमारे स्वार्थ प्रेरित कर्म हैं। आज प्रेम, सद्भाव, नैतिकता आदि जैसे अच्छे गुण सिर्फ किताबी बातें बन गए हैं। ऐसी स्थिति में पूरी मानव जाति कठिन परिस्थितियों से जूझ रही है।
हर कोई एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है। यहां तक कि दस बुरे लोगों में से एक अच्छा व्यक्ति अपनी अच्छाई छोड़ने के लिए मजबूर है। यदि वह उनके जैसा व्यवहार नहीं करता है तो उसे कई परेशानियों और कष्टों का सामना करना पड़ता है।
आज हर कोई हर जगह शानदार काम कर रहा है, लेकिन वे सभी अपने दम पर एक आरामदायक जीवन जीना चाहते हैं। ऐसा जीवन जिसमें बहुत कुछ करके बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। परिणामस्वरूप अधिकांश लोग अपने भाग्य का ठीक से पालन नहीं करते हैं।
वास्तव में, मानव जीवन करम प्रधान है। कर्म के बिना न तो किसी का अपना जीवन और न ही समाज और देश का सुधार हो सकता है। अथर्ववेद कहता है, “करमक्रवंति मानव:” अर्थात मनुष्य वह है जो अपने कर्मों से दूर नहीं होता है। केवल एक मनुष्य जो अच्छे कर्म करता है, वह कहलाने के योग्य है। भगवान ने केवल कर्मों का पालन करने के लिए मनुष्य बनाया है। अच्छे कर्मों के बिना किसी भी इंसान को आदर्श नहीं कहा जा सकता है। एक इंसान अपने कर्मों के कारण ही एक महान इंसान और महान दानव बन सकता है।
जब भगवान स्वयं धरती पर अवतरित होते हैं, तो उन्हें भी करम धरम का पालन करना पड़ता है। इसलिए हमारे लिए यह बहुत जरूरी है कि हम अपने कार्यों के प्रति सावधान रहें। बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना निस्वार्थ कर्मों का जीवन जिएं। हमें हमेशा ऐसे कर्म करने चाहिए जो स्वार्थ और परोपकार के अलावा स्वार्थ और परोपकार के लिए हों। वास्तव में, स्वार्थ से बड़ा कोई धर्म नहीं है। प्रशांत अग्निहोत्री।